गुरु पूर्णिमा आज, ऐसे करें अपने गुरु को याद; जानें गुरु पूर्णिमा का महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि
भोपाल | अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं, तत्पदंदर्शितं एनं तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात यह श्रृष्टि अखंड मंडलाकार है। बिंदु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज संबंध है। इस संबंध को जिनके चरणों में बैठ कर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है। जैसे सूर्य के ताप से तपती भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की ताकत मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में शिष्यों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन सनातन धर्म में गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।अध्ययन के लिए अगले चार महीने उपयुक्त माने गए हैं। पिछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का स्वरूप बहुत कुछ बदला हुआ है। कोरोना संक्रमण के कारण गुरु वंदना भी ऑनलाइन हो रही है। समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता के शीर्ष पर बैठे लोग अपने-अपने तरीके से गुरु को याद कर रहे हैं।जीवन में हम जो कुछ भी प्राप्त करते हैं कहीं न कहीं गुरु की कृपा का ही फल है। गुरु का मतलब शिक्षक से नहीं बल्कि गुरु माता-पिता, भाई, दोस्त किसी भी रूप में हो सकते हैं जिनका नाम सुनते ही हृदय में सम्मान का भाव जगता है।
सम्मान प्रकट करने के लिए किसी दिन का नहीं बल्कि प्रत्येक दिन गुरु वंदनीय होते हैं। हालांकि, जीवन की आपाधापी में भौतिक रूप जीवन निर्माता के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा वो खास दिन होता है जहां हम भौतिक एवं मन दोनों ही रूप से गुरु की वंदना, सम्मान करते हैं।आषाढ मास के पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इसी दिन चारों वेद व महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था। वेदों की रचना करने के कारण इन्हें वेद व्यास भी कहा जाता है। वेद व्यास के सम्मान में ही आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन गुरु पूजन का विशेष विधान है। इस बार गुरु पूर्णिमा पांच जुलाई को पड़ रहा है। संघ के स्वयं सेवक केसरिया ध्वज के समक्ष गुरु पूजन करते हैं। पूजा-अर्चना के लिए मंदिरों में भारी भीड़ होती है। वहीं, इस बार कोराना संक्रमण के कारण मंदिर जहां सूने हैं वहीं सार्वजनिक कार्यक्रम भी नहीं होगा।
पिता पहले गुरु, कार्यक्षेत्र में मिला प्रशांत कुमार का मार्गदर्शन
शिक्षा की शुरुआत ही गुरु वंदना से होती है। कहा गया है, गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर: गुरु: साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: यानी गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं। गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं। गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं। सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है। उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ। मेरे जीवन में गुरु का यही भूमिका पिता उमापति राय ने निभाई।उन्होंने मुझे जीवन पथ पर आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। जीवन के किसी भी मोड़ पर जब मुझे निराशा हाथ लगी। पिता ने मुझे संघर्ष की प्रेरणा दी। कार्यक्षेत्र में मुझे प्रशांत कुमार का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने एक लोक सेवक के रूप में हमेशा जनता के बीच रहकर जनता के लिए कार्य करने की प्रेरणा दी। मुझे अपने प्रशिक्षण अवधि में उन्हें साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह हमेशा पथ प्रदर्शक की भूमिका में रहे।